Somvar Vrat Katha
सोमवार व्रत कथा:

Shiva, the destroyer, The Adi Dev, Bhole Bhandari, Shambu, Mahadev, Shivji, Neelkanth - Shiva is often worshipped as one member of the Holy Trinity of Hinduism, with the gods Brahma (the Creator) and Vishnu (the Protector) being the other deities. It is believed that Hanuman is the eleventh avatar of Lord Shiva.The snake around Shiva's neck reinforces a sense of stillness. Shiva's Trishul or Trident symbolizes the unity of three worlds. Shiva accepted Nandi Cow, who was offered to Him by other Gods, as his doorkeeper and his vehicle. Ganesha is the son of Shiva and Parvati and he is the brother of Karthikeya (or Subrahmanya), the god of war.


सोमवार व्रत कथा: (Somvar Vrat Katha)



एक समय की बात है। किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। इतना सबकुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। दिन-रात उसे यही चिंता सताती थी। पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था।

मां पार्वती उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गईं. भगवान शिव से उन्होंने उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया. भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती, साहूकार के भाग्य में यही लिखा है. पर पार्वती जी नहीं मानी और भगवान शंकर से साहूकार की भक्ति का मान रखने का आग्रह करने लगीं.

शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान दे दिया. लेकिन उसके बालक को सिर्फ बारह वर्ष की आयु ही दी. इस बात पर साहूकार ना तो खुश हुआ और ना दुखी. पर उसने भगवान शंकर की पूजा करनी नहीं छोड़ी. वह पहले की ही तरह पूजा करता रहा. साहूकार के घर पुत्र का जन्म हुआ.

वह जब 11 साल का हो गया तो साहूकार ने उसे काशी शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया. अपने पुत्र को उसके मामा के साथ काशी भेज दिया गया. साहूकार ने अपने पुत्र को धन भी दिया और कहा कि मार्ग में यज्ञ कराना. जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना.

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े. रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था. लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था. राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची.

साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया. उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा. लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था. उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी.

उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है. मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं.’

जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई. राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई. दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया. जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया. लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ.

शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए. मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया. संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे. पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा. आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें.

जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया. अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है. लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे.

माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया. शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया. शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया. उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया.

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

ॐ नमः शिवाय।। ॐ नमः शिवाय मंत्र का अर्थ है कि 'मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ। ये शिव मंत्रों में सबसे प्रसिद्ध मंत्र है। मान्यता के अनुसार सावन में प्रतिदिन इसका जाप भगवान शिव को तुरंत प्रसन्न करता है, वहीं शिवरात्रि के दिन इसका 108 बार जप करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

रूद्र गायत्री मंत्र : – ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

ॐ महादेवाय नम: सामाजिक उन्नति और धन प्राप्ति के लिए यह मन्त्र उपयोगी है।

ॐ नमो भगवते रुद्राय : मान सम्मान तथा मोक्ष प्राप्ति की प्राप्ति होती है और समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है।

ॐ महादेवाय नम: घर और वाहन की प्राप्ति हेतु।

ॐ शंकराय नम: दरिद्रता, रोग, भय, बन्धन, क्लेश नाश के लिए इस मंत्र का जाप करें।

Shiva

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