Shri Durga Chalisa - श्री दुर्गा चालीसा

Goddess Durga, also known as Mahamaya, is the Great Mother of the Cosmos, Goddess Durga is worshipped as the Goddess of destruction a fearful manifestation of Parvati and represents the power of the Supreme Being that preserves moral order and righteousness in the universe.

Origin of Goddess

Durga It is believed that once the existence of the universe was under a threat by Mahishasura (the demon). The Gods pleaded Shiva to protect their world from the evil forces. Lord Shiva asked the three goddesses, Saraswati, Maa Kali and Maa Lakshami to release their powers (shaktis). The Power emerged in a female form. The Divine light emerged and a goddess of exceptional power appeared with many arms. She was beautiful as well as ferocious.

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥




रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ संतन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम्
(Saptashloki Durga Stotra)

शिव उवाच
देवि त्वं भक्त सुलभे सर्वकार्य विधायिनी
कलौ हि कार्यसिद्धय्र्थमुपायं ब्रुहि यत्नतः

देव्युवाच
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते

विनियोग:
ॐ अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र स्य नारायण ऋषिः
अनुष्टुप छन्दः श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः
श्री दुर्गा प्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोगः

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता

सर्व मङ्गल मङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तुते

रोगा नशेषा नपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्
त्वामा श्रितानां न विपन्न राणां
त्वामा श्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति

सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्या खिलेश्वरि
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम्

इति श्री सप्तश्लोकी दुर्गा स्त्रोतम संपूर्णम

ध्यान के लिए माँ दुर्गा मंत्र

ॐ जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम |
लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम ||

संतान सुख के लिए माँ दुर्गा मंत्र

सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥

मोक्ष प्राप्ति के लिए माँ दुर्गा मंत्र

सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते||

ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए माँ दुर्गा मंत्र

ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै।।

जीवन में प्रसन्नता के लिए माँ दुर्गा मंत्र

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव।।

संकट से बचने के लिए माँ दुर्गा मंत्र

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।

बीमारी से रक्षा करने के लिए माँ दुर्गा मंत्र

गानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥

धन की प्राप्ति के लिए दुर्गा मंत्र

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या

Dandia

Devi Mantra

Shivji

Bhole Bhandari

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